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जैव प्रक्रम (Life Process) Class 10th Short Notes Class 10th बिहार बोर्ड

जैव प्रक्रम (Life Process) Class 10th Short Notes Class 10th बिहार बोर्ड 

👉 सजीवों के शरीर में होने वाले विभिन्न क्रियाकलापों के अध्ययन को शरीर क्रिया विज्ञान कहते हैं।
👉 जीवों के वे सभी प्रक्रम जो सम्मिलित रूप से अनुरक्षण का कार्य करते हैं, जैव प्रक्रम कहलाते हैं।
👉 वह विधि जिनमें जीव पोषक तत्त्वों का ग्रहण कर जैव प्रक्रम हेतु उनका उपयोग करते हैं, पोषण कहलाता है।
👉 सजीवों में पोषण की मुख्य दो विधियाँ हैं 
(i) स्वपोषण (autotrophic nutrition) 
(ii) परपोषण (heterotropic nutrition)
👉 स्वपोषण में जीव (पौधे) अपने भोजन का संश्लेषण स्वयं करते हैं तथा किसी जीव पर निर्भर नहीं रहते हैं।
👉 परपोषण में जीव (पौधे) अपने भोजन का संश्लेषण स्वयं नहीं करते हैं तथा पोषण के लिए किसी दूसरे जीव पर निर्भर  रहते हैं।
👉 जंतुओं में तीन प्रकार के परपोषण विधियाँ पायी जाती है-
(i) प्राणि समपोषण (Holozoic nutrition)-
भोजन ठोस या तरल के रूप में जंतुओं के भोजन ग्रहण करने की विधि द्वारा ग्रहण करते हैं ऐसे जीव प्राणि समभोजी जीव कहलाते हैं।
(ii) मृतजीवी पोषण (Saprophytic nutr-ition) मृत जंतुओं एवं पौधों के शरीर से जीव अपना भोजन घुलित कार्बनिक पदार्थों के रूप में अपने शरीर की सतह से अवशोषित करते हैं। ऐसे जीव मृतजीवी कहलाते हैं।
(iii) परजीवी पोषण (Parasitic nutrition) - ऐसे जीव जो दूसरे प्राणी के संपर्क में रहकर, उनसे अपना भोजन प्राप्त करते हैं इसमें भोजन करने वाला जीव परजीवी (parasite) तथा जिनके शरीर से अपना भोजन प्राप्त करते हैं, पोषी (host) कहलाते

👉 मनुष्य में पाचन की क्रिया मुखगुहा से प्रारंभ हो जाती है।
👉 मनुष्य के आहार नाल से संबंधित विभिन्न भाग में मुखगुहा, ग्रसनी, ग्रासनली, आमाशय, छोटी आँत, यकृत, अग्न्याशय, आंत ग्रंथियाँ तथा बड़ी आँत क्रमवार होता है।
👉 लार ग्रंथि, यकृत, अग्न्याशय पाचक ग्रंथियाँ मनुष्य के आहार नाल से संबंधित रहती है तथा भोजन के पाचन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
👉 पचे हुए भोजन का अवशोषण छोटी आँत के विलाई (villi) के द्वारा होती है।
👉 पचे हुए भोजन रक्त में मिलकर रक्त संचार के द्वारा विभिन्न अंगों में वितरित हो जाते हैं।
👉 उन समस्त जैव प्रक्रियाओं को जिनके द्वारा शरीर में ऊर्जा का उत्पादन होता है, सम्मिलित रूप से श्वसन कहते हैं।
👉 कोशिकीय श्वसन की दो अवस्थाएँ होती हैं अवायवीय तथा वायवीय श्वसन।
👉 अवायवीय श्वसन में ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में ग्लूकोज अणु का आंशिक विघटन पाइरुविक अम्ल में होता है। यह क्रिया कोशिका द्रव में होती है।
👉 वायवीय श्वसन की प्रक्रिया माइटोकॉन्ड्रिया में होती है जिसमें ऑक्सीजन की उपस्थिति में पायरुवेट का पूर्ण विखंडन होता है।
👉 जंतुओं में मुख्यतः चार प्रकार के श्वसन अंग होते हैं 
(क) त्वचा  – मेढक, केंचुआ 
(ख) श्वासनली या ट्रैकिया (Trachea) – कीट 
(ग) क्लोम (gills) - मछली 
(घ) फेफड़ा (Lungs) - स्तनधारी 
👉 मनुष्य में श्वसन प्रश्वास (inspiration) तथा उच्छ्वास (Expiration) दो चरणों में संपन्न होती है। दोनों अभिक्रियाएँ सम्मिलित रूप से श्वासोच्छ्वास (breathing) कहते हैं।
👉 परिवहन तंत्र जीवों के शरीर में पदाथों का परिवहन या स्थानांतरण के लिए विकसित तंत्र है।
👉 विसरण की क्रिया द्वारा एक कोशकीय पौधों में पदार्थों का विसरण होता है।
👉 जटिल बहुकोशिकीय पौधों में जल एवं खाद्य पदार्थों का परिवहन संवहन उत्तक जाइलम (Xylem) और फ्लोएम (Phloem) उत्तक द्वारा होती है।
👉 वाष्पोत्सर्जन पौधों के वायवीय भागों से जल का रंध्रों द्वारा वाष्प के रूप में निष्कासन होता है। 
👉 परिसंचरण तंत्र रक्त, हृदय एवं रक्त वाहिनिकाओं से मिलकर बनते हैं।
👉 रक्त तरल संयोजी उत्तक है जिसमें प्लाज्मा, लाल रक्त कोशिकाएँ, श्वेत रक्त कोशिकाएँ एवं रक्त पट्टिकाणु हैं।
👉 हृदय मुख्य रूप से केंद्रीय पंप की तरह कार्य करता है जिसमें यह रक्त पर दवाब बनाकर उसका परिसंचन पूरे शरीर में करता है।
👉 पेरिकार्डियम एक दोहरी झिल्लीनुमा थैली है जिसमें हृदय स्थित होता है।
👉 मनुष्य का हृदय चार वेश्मों (Chamber's) का बना होता है।
👉 जीवों के शरीर से उपापचयी क्रियाओं के फलस्वरूप उत्पन्न अनावश्यक एवं विषाक्त अपशिष्ट पदार्थों (Waste products) का निष्कासन उत्सर्जन कहलाता है।
👉 जटिल बहुकोशिकीय जंतुओं में अपशिष्ट पदार्थों के निष्कासन के लिए विशेष उत्सर्जी अंग होते हैं।
👉 निम्न श्रेणी के जंतुओं में कोई उत्सर्जी अंग नहीं होते हैं। उत्सर्जी पदार्थ शरीर की सतह से विसरण (diffusion) की प्रक्रिया के द्वारा बाहर निष्कासित होता है।
👉 मनुष्य तथा वर्रीब्रेटा (vertebrata) उपसंघ के सभी जंतुओं में उत्सर्जन का प्रमुख अंग एक जोड़ा वृक्क है।
👉 वृक्क की रचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई नेफ्रॉन या वृक्क नलिकायें कहलाती है।
👉 वृक्क का मुख्य कार्य मूत्र का निर्माण है वृक्क द्वारा मूत्र का निर्माण तीन चरणों में संपन्न होता है
(i) ग्लोमेस्लर फिल्ट्रेशन (glomerular filteration)
(ii) चयनात्मक पुनरावशोषण (selective reabsorption)
(iii) ट्यूबुलर स्त्रवण (tubular secretion)
👉 रक्त के कृत्रिम शुद्धिकरण को हीमोडायलिसिस (haemodialysis) कहते हैं।

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